Menu
blogid : 240 postid : 7

नाना की बात ने खूब रुलाया

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
  • 38 Posts
  • 243 Comments


अर्चना कुमारी
स्वामी सहजानंद कालेज, जहानाबाद

…………..
परिचय : मैं एक लड़की हूं कोमल सी और ऐसी दुनिया में आयी हूं, जहां दहेज प्रथा की चुभन है और लड़के-लड़की में असमानता का बोलबाला है। फिर भी मुझे ऊंचे गगन को छूना है, कुछ बनकर दिखाना है। अपने सपने को पूरा करना है।

अन्य हकीकत : लड़की होना अपने-आप में गौरव की बात है, लेकिन हमारा समाज व हमारे माता-पिता इस बात को नहीं मानते। विवाह की रीतियां इतनी पुरुषवादी हैं कि शादी में कन्या पक्ष को दहेज देना पड़ता है, जबकि वंश चलाने के लिए लड़की-लड़के दोनों की जैविक भागीदारी समान होती है। दहेज के चलते मां-बाप की नजर में लड़की परिवार की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं की जड़ बनी होती है। यह सोचकर आज माता-पिता लड़की को जन्म देना ही नहीं चाहते।

मेरे अनुभव कुछ अच्छे हैं, तो कुछ बुरे भी। मैं बीसीए प्रथम वर्ष की छात्रा हूं लेकिन इसी बीसीए में नामांकन करवाने के लिये मुझे कितने पापड़ बेलने पड़े, ये मैं ही जानती हूं। मैं वर्ग नौ में थी, तभी से खुद टयूशन पढ़ाकर पढ़ाई का खर्च वहन करने लगी थी। जब बात बीसीए में एडमिशन की आयी तो मैं असहाय हो गई। आखिर मैं 10 हजार रुपये कहां से लाती। चूंकि मैं लड़की थी (यानी दहेज देकर होने वाली शादी के साथ मुझे परिवार से विदा किया जाना है), इसलिए मेरीे पढ़ाई के प्रति कोई उत्सुक नहीं था। पापा (टालने के ख्याल से) कहते, अगले साल नामांकन करवाना। नानाजी कहते- जितना पढ़ ली, वही काफी है। ज्यादा पढ़ेगी तो उस लायक लड़का भी खोजना पड़ेगा।

मैं यह सब सुनकर अकेले में बहुत रोती। फिर एक दिन मैं अपने मौसा जी से बोली कि आप मेरा बीसीए में नामांकन करवा दीजिये। अगर मैं अपने लक्ष्य को पूरा करने में कामयाब हो गई, तो आपकी बेटी (अपनी मौसेरी बहन) को भी पढ़ा दूंगी। अब मैं उनके खर्च पर बीसीए तो कर रही हूं, लेकिन बाद में जब एमसीए में नामांकन की बारी आयेगी तो घर में बवाल मचेगा ही। हर कोई मुझसे यही सवाल करेगा कि तुमने अपने शहर (जहानाबाद) से बाहर जाकर पढ़ने की बात सोची भी तो कैसे? वे लोग कभी मुझे पटना या कहीं और एमसीए करने की इजाजत नहीं देंगे। उनका तो यही जवाब होगा-शादी कर दूंगा, उसके बाद जहां तक पढ़ना हो पढ़ती रहना।

मैं आप से, जो इस निबंध को पढ़ रहे हैं, पूछती हूं कि क्या शादी के बाद ( जैसी कठिन परिस्थितियां प्राय: होती हैं) लड़कियां अपनी पढ़ाई जारी रख सकती हैं? शादी के बाद तो लड़कियां अपने ससुराल में व्यस्त हो जाती हैं। उन्हें नये परिवार की हर उम्मीद पर खरा उतरना होता है, इसलिए पढ़ाई का समय मिलता ही कब है?

निष्कर्ष : अन्त में मैं यही लिखना चाहूंगी कि कैसे भी हो, मुझे अपने सपने को पूरा करने के लिये एमसीए करना है। चाहें इसके लिये मुझे पूरे परिवार के सदस्यों से बगावत क्यों न करनी पड़े। मैं हर कठिनाई को पार करते हुए एमसीए करूंगी और बेहतर जॉब पाकर अपनी मनोकामना पूरी करूंगी।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh