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अलका कुमारी
आर.बी.बी.एम. कालेज, मुजफ्फरपुर
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मैं बचपन से दुखी रहती हूं। कारण यह है कि हम सिर्फ दो बहनें ही हैं। मेरा कोई भाई नहीं हैं। मेरे पापा हम बहनों से बात भी ढंग से नहीं करते। पहले तो हम ये सब बातें नहीं समझती थीं, लेकिन बाद में उनकी ये बेरुखी खाए जाने लगी। मेरी मां बहुत अच्छी है। हम दोनों को बहुत प्यार करती हैं। मां ने कालेज में नामांकन करा दिया और यही बोली कि बेटी अपनी इज्जत का ख्याल रखना। यही कारण है कि मैं किसी से सही ढंग से बात नहीं कर पाती हूं। मेरी दोस्त जब पूछती है कि तुम्हारा जन्म दिन कब होता है, तो आंखों में आंसू आ जाते हैं। मैं उन लोगों को सर्टिफिकेट वाला डेट बता देती हूं। मुझे बस इतना पता है कि मेरा जन्म मार्च 1990 में हुआ था। किस दिनांक को ये पता नहीं, क्योंकि ये सब लिखना तो पापा का काम था और उन्हें तो मेरे जन्म का समाचार सुनकर दिल का दौरा पड़ा था। मुझे दुख इसी बात का है कि पापा ने आज तक मेरा चेहरा सही ढंग से नहीं देखा था। मेरी फोटो जब कल पेपर में छपी तो गांव के लोगों ने पापा से बताया-तुम्हारी बेटी की फोटो छपी है। उनको विश्वास ही नहीं हुआ। फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि ये सब क्या है? मैंने उनको प्रोग्राम के बारे में सब कुछ बताया, तो उन्हें बहुत खुशी हुई।
मैंने बताया कि लड़की अब सब कुछ करती है। हवाई जहाज से लेकर ट्रेन तक चलाती है, ऑटो भी चलाती है। मैंने बताया कि ये सब जेंडर-वेंडर फिल्म में दिखाया गया था। इतना सुनने पर जब पापा ने मुझसे पूछा कि तुम क्या बनोगी, तो मैंने कहा-गायिका बनूंगी। पापा बोले- उसके लिए संगीत की जानकारी बहुत जरूरी है। मैंने कहा- मैं संगीत से ही बी.ए. कर रही हूं। और कालेज में नाम मम्मी ने लिखवाया है।
मुझे खुशी इस बात की है कि समाज बदले या ना बदले, लेकिन मेरे पापा जरूर बदलेंगे। उन्होंने उस दिन पहली बार मुझे आशीर्वाद दिया-जाओ तुम निबंध प्रतियोगिता में जरूर प्रथम आओगी। तुम कुछ और नहीं, तुम अपनी कहानी ही लिख देना। मैं शुक्रगुजार हूं कि कल के प्रोग्राम (सपनों को चली छूने) के लिए, जिसने मेरे पापा को भी बदल दिया।
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