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सपना
एस.के.महिला कालेज जहानाबाद
जब मैं संसार में आयी तो मुझे कई तरह से अनुभव कराया गया कि यदि मैं एक लड़की हूं तो कैसे लड़कों से भिन्न और असमान हूं। बार-बार बताया जाता रहा कि लड़की होना कैसे दूसरे दर्जे का होना है। शुरुआत बचपन हुई। जब मैं दो साल की हुई तो मुझे यह बताया गया कि तुम बैठकर शू-शू करो जबकि मेरा भाई खड़ा होकर करता था। मुझे उस समय भी अनुभव कराया गया कि मैं एक लड़की (अर्थात कम महत्वपूर्ण) हूं, जब मैं उससे कुछ बड़ी हुई। मुझे कम फीस और सतही पढ़ाई वाले सरकारी स्कूल में दाखिल कराया गया, जबकि मेरे भाई को महंगे प्राइवेट स्कूल में। मुझे उस समय भी यह कटु अनुभव हुआ कि मैं एक लड़की हूं, जब मैं पांच साल की हुई। मेरा विस्तार और मेरे भाई का विस्तार अलग हो गया।
शारीरिक रूप से भिन्न होने का एहसास फिर तब हुआ, जब मेरा मासिक धर्म शुरू हुआ। लड़की-लड़के की अलग-अलग शरीर रचना तो प्रकृति की खूबसूरती है, लेकिन दोनों से असमान व्यवहार समाज की बदसूरत पहचान है।
मेरे मां-पिताजी मुझे बहुत प्यार करते हैं। वे मेरे लिए दुनिया के सबसे अच्छे माता-पिता हैं, लेकिन सामाजिक दबाव में भेदभाव मेरे साथ भी हुआ। इस सबको ध्यान में रख कर मैंने दसवीं की परीक्षा अच्छे अंक से पास कर आईएएस बनने का सपना देखा है। मुझे परिवार की ओर से किसी प्रकार का दबाव नहीं मिलता कि तुम यही करो। मैं एक दिन जरूर आईएएस बनूंगी। कुछ लोग यह सुनकर मेरा मजाक उड़ाते हैं। उस समय मुझे अनुभव होता है कि मैं एक लड़की हूं इसलिए मुझे लोग ताना देते हैं। मेरे माता पिता जी कभी ऐसा नहीं कहते। यह मेरी ताकत है। मैं अपनी इच्छा और सपने को मारना नहीं, बल्कि जीवित करना चाहती हूं। जीवन में सफल हो कर मैं असमानता के ब्लैक बोर्ड पर सफेद अक्षरों से समानता लिखना चाहती हूं।
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