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हंस कर बात करती हूं कि बेबसी कहीं मजाक न बन जाए

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
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मैं एक लड़की हूं, लेकिन इससे पहले मैं एक मनुष्य हूं, जिसमें सब कुछ है, जैसे- संवेदनशीलता, विचार और बुद्धि आदि। लेकिन मैं एक लड़की हूं, इसलिए अपने हर अनुभवों को दबा कर रखती हूं, डरती हूं कि किसी से कहने पर वो मेरा मजाक न बना दे। मां-पिताजी से कहने पर वो चिंतित हो जाएंगे। मैं प्रयास करती हूं कि अपनी सारी बातें लिख डालूं। जब से मुझे याद है- मैं छोटी थी, सभी मुझे दब्बू कहते शायद मेरा अपीयरेंस ही वैसा था। जब मेरी बड़ी दीदी पढ़ती तो देखने में बहुत मजा आता था और मेरी इच्छा हुई मैं भी कुछ लिखूं-पढ़ूं ताकि सभी मेरी तारीफ करें। मैंने छोटी सी कहानी लिखी और बहुत खुशी हुई सबने मेरी बहुत बड़ाई की। वो मेरा पहला उत्साहवर्धन (इनकरेजमेंट) था, पहली खुशी थी। सबके आशीर्वाद ने मुझे एक ऐसे संस्थान में पहुंचाया जहां नि:शुल्क पढ़ाई की 12 तक। जवाहर नवोदय विद्यालय। पापा-मां दिन-रात मेहनत कर सबकी पढ़ाई का खर्च देते, लेकिन उनकी इच्छा पूरी न हो सकी-बेटियों को डाक्टर बनाना चाहते थे, पर पैसों के अभाव में मेडिकल की पढ़ाई पूरी होने ही नहीं दी। ऐसा हुआ मेरी दीदी के साथ। मुझे बहुत दु:ख हुआ, फिर मैंने निश्चय किया कि अपने मां-पिता के सपनों को पूरा करूंगी। क्लास 10 तक ये इच्छाएं मेरे मनोबल को आगे बढ़ाती गई। मैंने अच्छे परिणाम पाए। 11वीं व 12वीं में पढ़ाई में कमी आई। वो थे मेरे बुरे अनुभव। बहुत उदास हुई थी मैं। कुछ डिसीजन नहीं कर पा रही थी। अंतत: आर्टस में एडमिशन लिया। मेरा छोटा भाई इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है। मैं चाहती तो जिद्द कर सकती थी, लेकिन बड़ी हो चुकी थी। सब कुछ का ज्ञान था मुझे। मेरी परिस्थिति ने मुझे चुप रहने को कहा, क्योंकि मां-बाप ने कभी बेटे-बेटियों में फर्क महसूस नहीं होने दिया। हमेशा कहते बेटी ज्यादा समझदार होती हैं, शायद इसी समझदारी ने मेरी इच्छाओं को दबा कर रख दिया। अब मैं चाहकर भी साइंस नहीं पढ़ सकती। अब भी रोती हूं, जिसे कोई महसूस नहीं कर सकता। हमेशा हंसकर बातें करती हूं, ताकि कोई परेशानी को देखकर मजाक न उड़ाए, मेरा फायदा न उठाए- बस यही है मेरी कहानी, एक गरीब परिवार की बेटी की। लड़कियां समझदार होती हैं, लेकिन इसमें उन्हें बहुत बलिदान देने पड़ते हैं, और वे देती भी हैं।

 

मेघा
मगध महिला कालेज, पटना

 

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