Menu
blogid : 240 postid : 71

मैं भी बालिका बधू बनी पर हार नहीं मानी

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
  • 38 Posts
  • 243 Comments

मैं मानपुर (गया) की रहने वाली एक साधारण सी लड़की हूं। मेरी शादी सिर्फ साढ़े तीन वर्ष की उम्र में हुई। तब से मैं लगातार ससुराल और मायके में रही हूं। हमेशा यहीं सोचती कि आखिर मेरी शादी इतनी छोटी सी उम्र में क्यों हो गयी? जब मुझे अनुभव हुआ कि बाल-विवाह एक बहुत बड़ा अभिशाप है, तब से हमेशा ये सोचती कभी अगर मौका मिला तो मैं अपने समाज से इसे दूर भगाऊंगी। इसके चलते कितनी तकलीफ उठानी पड़ी थी मुझे। न चाहकर भी मुझे ससुराल जाना पड़ता और वहां के सारे काम करने पड़ते। मेरी इच्छा थी कि मैं भी प्राइवेट स्कूल में पढ़ूं पर ये भी सपना बन गया था क्योंकि वहां की जिम्मेवारियां इतनी छोटी उम्र में मुझे मिल गयी कि हमेशा एक बंद पिंजरे में रह गयी।

अगर मैं दिल से काम करके भी पढ़ाई के लिए समय निकालूं तो जरूर पढूं़गी। और वहीं अनुभव लेकर सरकारी स्कूल में नामांकन करवा कर सिर्फ एक घंटे का टयूशन पढ़ने लगी। दिन में घर का काम करती और रात को पढ़ाई करती। मेरा एक छोटा देवर भी मेरे वर्ग में ही पढ़ता था। दिन-रात पढ़ाई करता उसे देखकर मेरा भी मन करने लगा कि काश मैं कुंवारी होती। तो मैं भी पढ़ाई करती और खेलती पर जिस समय बच्चों के खेलने का समय आता मुझे काम करना होता। फिर इसी तरह मैं दशम् वर्ग में पहुंच गयी। उसी तरह दिन में काम करके रात में पढ़ाई करती हुई। मेरा देवर भी मेरे वर्ग में ही था। हम दोनों ने साथ में मैट्रिक की परीक्षा दी पर परिणाम ऐसा आया की सभी लोग दंग रह गये। मैं प्रथम श्रेणी में आयी थी पर मेरे देवर का रिजल्ट रुक गया। उस दिन से मेरी सासू मां ने मुझे आगे पढ़ने की अनुमति फिर से दी। वो दिन मेरा सबसे खुशी का दिन था। अगर कोई मेहनत करे और दिन में लगन हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं। मेरे पिता जी भी मुझसे इतने खुश हुए कि सभी को मिठाई खिलायी गयी। खुशी से मेरा नामांकन गया कालेज में करवाया गया। उस दिन मेरी आंखें आंसुओं से भरी थी कि अगर मेरी शादी बचपन में हो भी गयी थी तो मुझे आज कोई गम नहीं हैं, क्योंकि मुश्किलें आदमी को जीना सीखा देती हैं और मुझे भी जीने की एक सच्ची राह मिल गयी। फिर मैं अपने ही घर एक ऐसा टयूशन पढ़ाना शुरू की जो बहुत गरीब होते और उनकी शादी बचपन में हो गयी हो। मैंने उन्हें नि:शुल्क पढ़ाना शुरू किया। वो टयूशन अभी तक पढ़ा रही हूं जिसमें शादी-शुदा लड़कियां आती हैं और पढ़ाने के साथ-साथ उन्हें ये भी सिखलाती हूं कि हमारी शादी छोटी उम्र में हो रही है फिर भी इसके लिए हमें चिंता नहीं करनी हैं। हमें हौसला रखकर अपने से बड़ों को ये बताना कि शादी की सही उम्र क्या हैं? मैंने ये पूरा विश्वास रखा है कि एक दिन मेरे समाज से खुद बड़े लोग ही कहेंगे कि बाल विवाह को जड़ से हटाना है। मैं  लड़कियों से ये जरूर कहना चाहूंगी कि जीवन में निराशा नहीं होना,मंजिल तुम्हारे कदम चूमेगी।


सीता कुमारी

गया कालेज, गया



Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh