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तन ढकने तक का पैसा नहीं, फिर भी कालेज में पढ़ती हूं

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
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जी हां, मैं एक लड़की हूं। इसका मतलब ये नहीं की मैं आगे नहीं बढ़ सकती हूं। मैं और मेरा परिवार बहुत गरीब है। पढ़ाई जारी रखने में असमर्थ हूं लेकिन मैं आगे बढ़ना चाहती हूं। मेरे पिता भी मुझे पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन वो क्या करें। उनके पास तो इतना भी नहीं कि वो मेरे तन को ढकें।

आज मैं इस प्रतियोगिता में अपने दिल की बात लिखना चाहती हूं। अपनी कहानी सबको बताना चाहती हूं। मुझे नहीं पता कि मैं आज जीत पाऊंगी या नहीं, लेकिन इतनी तो खुशी अवश्य मिलेगी कि आज जो दुनिया को पता नहीं था, वह चुभता सच मैं सबके पास पहुंचाने में समर्थ रहूंगी। सबको पता चलना ही चाहिए कि एक स्त्री, जिसके पास तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं था, वह आज एक कालेज में पढ़ रही है।

जब मैं छ: साल की थी तो मेरे घर की ऊपरी मंजिल में एक लड़की रहती थी। वह अच्छे स्कूल में पढ़ती थी। अच्छे कपड़े पहनती थी। नेक दिल थी। मैंने ये सब देखकर कभी अपने माता-पिता से जिद नहीं की कि मुझे भी ऐसा कीजिए। मैंने प्रण लिया कि मैं आगे कुछ करूंगी। आज जिस तरह मैं जी रही हूं, वैसा जीवन मैं अपने बच्चों को नहीं दूंगी। हालात का सामना करने के लिए मैं उसी लड़की के घर में दाई (नौकरानी) का काम करने लगी। धीरे-धीरे मेरी दोस्ती उस लड़की से हो गई और वो मुझे अपने कपड़े पहनने को देने लगी। वह रोज 5 रुपये भी देती। मैं उस पैसे को गुलक में डालती थी। दो साल लगातार काम किया और उस पैसे से अपना नाम लिखवाया। वहां मैं कुछ दिन ही पढ़ी थी तो वहां नाच में भाग लेने का मौका मिला। नाच से वहां मौजूद नेता सुरेन्द्र यादव (मुख्य अतिथि) इतने खुश हुए कि उन्होंने मंच पर मुझे 101 रु. का इनाम दिया। मैंने पैसे पापा को सौंप दिये। उसी पैसे से उन्होंने कुछ काम शुरु किये। हमें आगे पढ़ने के लिए पिताजी कमाने लगे।

आज मैं बहुत खुश हूं कि भगवान ने मुझे लड़की रूप में जन्म दिया। मैंने इतनी परेशानी झेली लेकिन मैं भगवान से ये नहीं कहती हूं कि ये अगले जन्म में मुझे लड़की मत बनाना। मैं तो भगवान से अवश्य कहूंगी कि मुझे अगले जन्म में भी लड़की ही बनाना। स्त्री के बिना कुछ भी नहीं।

स्त्री ही मां है, वही अर्धागिनी है। बस, इतना कहना चाहती हूं कि हे भगवान, मुझे हर जनम में नारी बनाना लेकिन सभी गुणों से अवश्य भर देना, क्योंकि अगर धन नहीं है, तो किसी भी तरह कमा लूंगी लेकिन गुण न हो, तो न मैं इसे किसी से मांग सकती हूं और न खरीद सकती हूं। गुण बाजार में खरीदा नहीं जा सकता। पैसा कमाया जा सकता है।

खुशबू गिरि

जी.बी.एम. कालेज,गया


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