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औरतें ही क्यों ढा रही हैं औरतों पर जुल्म ?

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
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जन्म के बाद मैंने जब से दुनिया में होश संभाला,तब से घर में हमेशा से लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव का ही अनुभव किया। लगातार निर्देश मिलते हैं -ये मत करो, वो मत करो, लड़कियों की तरह घर में रहो, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ, शाम में ज्यादा देर तक बाहर मत रहो। हमेशा यही सब सहती रही। जब तक बच्ची थी, तब तक ये दुनिया बहुत अच्छी लगती थी, पर जब से बड़ी हुई हूं, तब से बस इन सब परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि पढ़ाई करने के लिए भी मुझे काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा, क्योंकि घर वालों का मानना है कि लड़कियां ज्यादा पढ़कर क्या करेंगी, आखिर उन्हें एक दिन अपने ससुराल ही तो जाना हैं। सब सोचते हैं कि एक तो पढ़ाई में पैसे खर्च करो, फिर एक दिन दहेज का इंतजाम करो। ऐसे में परिवार के लिए तो बेटियां पराया धन होती हैं।

परिवार, समाज व अगल-बगल में भी यही देखने को मिलता है। सुबह जब पेपर उठाओ तो ज्यादातर खबरें औरतों पर किए जा रहे अत्याचार पर ही छपती हैं। कहीं लड़कियां दहेज के नाम पर जलायी जाती हैं, तो कहीं औरतों की इज्जत से खिलवाड़ किया जाता हैं। ज्यादातर मामलों में औरतों के द्वारा ही औरतों पर शोषण किया जाता है। मैंने कभी नहीं सुना कि एक ससुर ने अपनी बहू को जला दिया, बल्कि सास-ननद ही हमेशा बहू को जलाती हैं। घर में भी मां अपने बच्चों में भेदभाव करती हैं। वह बेटों को ज्यादा मानती है,आखिर क्यों?

क्यों बार-बार औरतों की हर कदम पर परीक्षा ली जाती हैं। आज कोई ऐसी जगह नहीं हैं, जहां औरतें सुरक्षित हैं। बस, ट्रेन, कार्यालय, सड़क- कहीं औरत खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती है। अगर उनके ऊपर कोई अत्याचार होता हैं तो वे  रिपोर्ट लिखाने में भी कतराती हैं, कारण यह है कि थाने में भी उन्हें सुरक्षित नहीं समझा जाता। अगर कहीं ज्यादा देर हो जाती है, तो हम खुद डर का अनुभव करते हैं। आखिर हमारा समाज कब औरतों को बख्शेगा? समाज में कन्या भ्रूण हत्या की जाती हैं, वो कहां तक सही है? बेटे की चाह में लोग बेटियों की हत्या कर देते हैं, जिससे हमारे देश में लड़कियों की संख्या में कमी हो रही है। जब लड़कियां नहीं होंगी, तब क्या करेगा समाज?  ये सृष्टि ही खत्म हो जायेगी। व्यवहार में दोहरापन यह है कि एक ओर देश में लड़कियों और औरतों की पूजा की जाती हैं। दूसरी तरफ उन पर अत्याचार किया जाता है। औरतों को दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि रूपों में पूजा जाता है, दूसरी तरफ उन्हें जलाया जाता हैं।

शहर में तो शिक्षा के कारण स्त्रियां बहुत आगे बढ़ रही हैं। वे डाक्टर, इंजीनियर, वित्तीय विशेषज्ञ और न जाने क्या-क्या बन रही हैं। पर ग्रामीण इलाकों में अभी भी औरतों की स्थिति बदतर है। महिलाएं जितनी भी आगे क्यों न बढ़ जाएं, हमेशा उन्हें दुर्बल ही समझता रहेगा। अगर हमें अपने समाज को बदलना है, तो शुरुआत घर से ही करनी पड़ेगी। एक मां को चाहिए कि वो अपनी बेटी को समाज में हक दिलाने के लिए लड़े। लड़कियों को समझाना होगा कि वह वस्तु नहीं, बल्कि व्यक्ति हैं। बेटा-बेटी में भेदभाव रोकना होगा। महिला संगठन, सरकार,सबको आगे आना होगा। जब तक समाज आगे नहीं आयेगा, तब तक कानून भी कुछ नहीं कर पायेगा। अभी हम लड़कियां हैं। कल हम औरत होंगी। एक समय था जब झांसी की रानी आदि वीरांगानाओं ने दुश्मनों से लोहा लिया। आज दहेज प्रथा, बाल विवाह, विधवा, परित्यक्तता समस्या , सतीप्रथा, भ्रूण-हत्या आदि शत्रुओं से जूझना है। हम लड़कियों को इन सब बुराइयों को देश से बाहर निकालना पड़ेगा। हम भविष्य हैं, हम ही हैं जो आने वाले हिन्दुस्तान को बदल सकते हैं।

पल्लवी कुमारी

रामेश्वर दास पन्नालाल महिला महाविद्यालय

पटना सिटी

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