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आत्मनिर्भर बेटियां भी बन सकती हैं मां-बाप का सहारा

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
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मैं अपने भाई-बहन में सबसे बड़ी हूं। मेरे माता-पिता ने कभी बेटी-बेटे में भेदभाव नहीं किया। लड़की होने के कारण उन्होंने मुझे कभी पढ़ने के लिए नहीं रोका। मेरा दाखिला अच्छे स्कूल में कराया गया। उन्होंने कभी मुझे मेरे भाई से कम नहीं समझा। मुझे हमेशा प्यार किया। जब भी मुझे किसी चीज की जरूरत हुई, तुरंत लाकर दिया। मैं जब स्कूल से निकली तब कालेज में दाखिला कराया। आज उन्हीं की बदौलत मैं यहां आकर पढ़ाई कर रही हूं। मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूं जो मुझे ऐसे माता-पिता मिले। पर मेरी तरह सभी लड़कियां भाग्यशाली नहीं होतीं। कुछ के माता-पिता नहीं चाहते कि उनकी बेटियां पढ़ें और आगे बढ़ें। उन्हें ऐसा लगता है कि अगर वो ज्यादा पढ़-लिख जाएगी तो उनकी इज्जत मिट जाएगी। (पता नहीं इज्जत की यह परिभाषा कैसी है?)

आज दुनिया कहां से कहां तक पहुंच गई पर आज भी हमारे देश में ऐसे रूढि़वादी माता-पिता की कमी नहीं है, जो नहीं चाहते कि उनकी बेटी पढ़े। उनका नाम रोशन करें। उन्हें यह समझना होगा कि सिर्फ लड़के ही माता-पिता का नाम रौशन नहीं करते, लड़कियां भी कर सकती हैं। आज भी बहुत सारे ऐसे शहर गांव हैं, जहां बच्चियों को मारा जाता है। गर्भस्थ भ्रूण की लिंग जांच कराकर कन्याओं को जन्म लेने से उन्हें रोक दिया जाता है। क्या लड़की होना गुनाह है? माता-पिता ये समझते है कि अगर लड़की हुई तो उसकी शादी के लिएदहेज के पैसे कहां से लाएंगे? आज अधिकतर घरों में लड़कियों को दहेज के लिए जला दिया जाता है। लड़कियां अगर पढ़-लिख भी जायं, तो उन्हें परिवार काम नहीं करने देता। उसे अकेले बाहर नहीं जाने देते। उन्हें ऐसा लगता है कि लड़कियों के लिए कमा करना जरूरी नहीं है। माता-पिता को यह समझना चाहिए कि अगर उनकी बेटी आत्मनिर्भर बन गयी तो वो अपने माता-पिता को भी पैसों की कोई कमी नहीं होने देगी। आज सरकार द्वारा चलाया जा रहा अभियान बहुत ही कारगर साबित हो रहा है, बेटी बचाओ। बड़ी संख्या में लड़कियां भी स्कूल जाने लगी है। उनके लिए राज्य सरकार की तरफ से स्कूल जाने के लिए पोशाक, सायकिल, जूते इत्यादि देकर बहुत अच्छा काम किया जा रहा है। इससे लड़कियों में पढ़ने के लिए जागरूकता आएगी। आज लड़कियों को लड़कों से कम नहीं बल्कि बराबर हक मिलना चाहिए। आज भी बहुत सारे ऐसे लोग है, जो बेटों की चाहत में बेटियों को जन्म देते हैं, जिससे उन्हें पढ़ाने-लिखाने में दिक्कत होती है। जन्म के समय लिंग अनुपात जन्म पूर्व लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव का बेहतर संकेतक है, परंतु जिला-स्तर पर और पूरे देश के लिए उपलब्ध न होने के कारण बाल लिंग अनुपात के आंकड़े का अब भी सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आज लोगों को यह समझना होगा कि लड़कियां किसी से कम नहीं है, आज यह डाक्टर, इंजीनियर से लेकर सभी ऊंचे पदों पर जा सकती हैं। वो किसी पर निर्भर नहीं है। अगर उन्हें अच्छी पढ़ाई-लिखाई, खान-पान और प्यार दिया जाये तो वो सबको प्यार और सम्मान देगी।

खुशबू कुमारी

महिला कालेज, खगौल

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